मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

दुनिया भी बड़ी सयानी है

बात ये सबकी जुबानी है।

 

जिस बात पे था अहंकार ,

रूखसत हुई वो जवानी है।

 

ज़िंदगी बड़ी अजीब जनाब,

ख़ुशी – गम की कहानी है।

 

अहले-वफ़ा अब न मिलेंगे,

नक़्शे-पाँ उनकी निशानी है।

 

कल तक जो बहुत खुश थी,

आज उस आँख में पानी है।

 

जख्म खाकर भी लिखता हूँ,

ये हाले-दिल की बयानी है।

 

दौरे-इश्क़, हाले-रुत न पूछ,

जख्मे-दिल की ये निशानी है।

 

खुद को बचाते कैसे निराश,

जब निगाहें-यार तूफानी है।

– विनोद निराश , देहरादून

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