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ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

चुनौती से कभी क्या आदमी का हर्ष घटता है ।

हमारी जिंदगी का इस तरह हर वर्ष कटता है ।

 

सियासी वार भी बंदूक की गोली सरीखे हैं ,

चुनावी दौर में हर कौम का मित मर्ष बटता है ।

 

कभी कश्मीर में देखो कभी बंगाल में देखो ,

लहू की छींट से इस देश का उत्कर्ष छटता है ।

 

मकां की नींव तो हमने कभी हिलती नहीं देखी ,

कभी दीवार गिरती है कभी ये फर्श फटता है ।

 

भले ही रोज आते हो गले मिलने सखा दोनो ,

उजाले से अँधेरे का कभी क्या कर्ष पटता है ।

 

जिसे पागल हवाएं रोज आती हैं बुझाने को ,

नहीं तूफान सम्मुख दीप का संघर्ष हटता है ।

 

कभी भी आँख से देखा नहीं सच मानना “हलधर”,

विचारों के झरोखों से हमेशा दर्श सटता है ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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