आश्चर्य से देखता है आवारा बादल,
कैसे बदल गई बूदों की फितरत,
वो बारिश नहीं थी, तुम्हारा भ्रम था,
वो मिट्टी की सोंधी सी खुशबू थी।
अनछुई, अनदेखी अहसास सी,
बारिश की बूदें उसकी पलकों से,
मानो बरस कर थक गई थी।
अब वारि की बूदें उसकी पलकों से नहीं,
उसकी उन्मुक्त हंसी में बरसती है।
– रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड