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जोर-शोर से चल रही है झटकों की राजनीति – राकेश अचल

neerajtimes.com – हम जैसे रोजाना लिखने वाले लेखकों के लिए मुश्किल ये है कि हमें देश में  राजनीति के अलावा कुछ भी नया नहीं होता दिखाई   देता । नया होता भी होगा तो आज की राजनीति का चेहरा इतना बड़ा है कि वो सबको अपने मायामंडल से छिपा लेती है।  आज मेरी कोशिश है कि मैं आपको राजनीति में लगने वाले झटकों या झटके वाली राजनीति से रूबरू कराऊँ। मानसिक कसरत आपको भी करना होगी।

चुनावी मौसम में जब लिस्टें बनतीं हैं तब किसी को टिकट मिलता है ,किसी का कटता है। टिकट  वितरण की पूरी प्रक्रिया ही झटका आधारित होती है । सियासत का काम ही झटके का दिया जलाकर रखने का है । बात बिहार से करें तो वहां राजद ने

पप्पू यादव को झटका दे दिया। उनकी पारम्परिक सीट से राजद के पुराने सुप्रीमो लालू यादव की बेटी को टिकट दे दिया गया। बेचारे पप्पू भाजपा से छिटककर राजद के करीब आये थे कि बात बन जाये लेकिन नहीं बनी ,उलटे झटका और लग गया।

आपको पता ही है कि भाजपा भी अपने एक युवा तुर्क वरुण गांधी को टिकट न देकर झटका दे चुकी है ।  वरुण गांधी के बागी होने की आशंका थी लेकिन वे बाग़ी नहीं हुए । खामोशी से अपनी माँ श्रीमती मेनका गांधी का चुनाव प्रचार करने में लग गए । वरुण को जोर का झटका जोर से ही लगा । धीरे से लगता तो और बात थी। ऐसे नौजवानों के प्रति मेरी सहानुभूति हमेशा रही है ,भले ही वे किसी भी दल के कार्यकर्ता हों।

आम जनता को उम्मीद थी की कांग्रेस अपने विभीषण केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ कोई मजबूत प्रत्याशी देगी,लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।

समाजवादी पार्टी को भी आजम खान साहब के गढ़ रामपुर से अंतिम  मौके पर उम्मीदवार बदलना पडा। जामा मस्जिद के शाही इमाम को ऐन  मौके पर प्रत्याशी बनाया गया इसलिए चुनाव  चिन्ह तक चार्टेड प्लेन से भेजना पड़ा ।  सपा के इस फैसले  से निवर्तमान सांसद  साहब को झटका लगना स्वाभाविक है। लेकिन रामपुर नरेश आजम खान साहब नहीं चाहते थे कि उनकी सल्तनत में पार्टी उनकी मर्जी के खिलाफ किसी को अपना प्रत्याशी बनाये ,कहते हैं कि आजम साहब ठीक उसी तरह से जेल से सियासत कर रहे हैं जैसे अरविंद केजरीवाल जेल से दिल्ली की सल्तनत सम्हाले हुए हैं।

झटके देने में भाजपा दूसरे दलों से सबसे आगे चल रही है ।  भाजपा की अब तक सात सूचियां आ चुकी हैं और 407  प्रत्याशियों के नाम घोषित हो चुके हैं। भाजपा की सूचियां हर बार किसी न किसी को झटका देतीं हैं ।  भाजपा ने जब मंडी सीट से अभिनेत्री कंगना रानौत को अपना प्रत्याशी बनाया तो पता नहीं कितनों को झटका लगा। सियासत में झटका देने की शुरूआत 1985  में कांग्रेस ने की थी ।  कांग्रेस ने उस दौर में सबसे बड़ा झटका ग्वालियर से चुनाव लड़ रहे भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी को दिया था ।  कांग्रेस ने ऐन  मौके पर पंडित जी के सामने सिंधिया घराने के प्रमुख माधवराव सिंधिया को उतार दिया था। कांग्रेस ने तब आज के शहंशाह अमिताभ बच्चन को भी ठीक उसी तरह मैदान में उतारा था जैसे इस चुनाव में भाजपा कंगना को लेकर आयी है।

झटके देने के तरीके में भी तब्दीली आ रही है ।  पहले टिकट काटकर या देकर झटके दिए जाते थे,अब पार्टियां स्टार प्रचारकों की सूची में नाम शामिलकर या नाम काटकर झटका देतीं है। मिसाल के तौर पर हरियाणा से भाजपा नेता कुलदीप बिश्नोई को पार्टी ने 3 दिन में दूसरा झटका दिया है। राजस्थान में लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए जारी स्टार प्रचारकों की लिस्ट में उनका नाम गायब है। इस लिस्ट में हरियाणा के  मुख्यमंत्री  नायब सिंह सैनी, रोहतक स्थित मठ के महंत एवं राजस्थान से विधायक बाबा बालकनाथ और केंद्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर का नाम शामिल है।भाजपा की स्टार प्रचारकों की सूची में मोदी जी के हनुमान अमित शाह का नंबर चौथा है। उनसे ऊपर राजनाथ सिंह ,जेपी नड्ढा और माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी खुद हैं।

झटका देने में चुनाव आयोग भी पीछे नहीं है । चुनाव आयोग ने हाल ही में बंगाली नेता सुश्री ममता बनर्जी पर टिप्पणी करने वाले भाजपा सांसद दिलीप घोष और कंगना रानौत पर टिप्पणी करने वाली कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत को नोटिस देकर झटकाने की कोशिश की है। चुनाव आयोग ने सबसे पहले यानि चुनावों की घोषणा से भी पहले कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी को भी एक एडवाइजरी जारी  कर झटका देने की कोशिश की थी। राजनीति में ये झटकेबाजी कब तक चलने वाली है ये कोई नहीं जानता। इसलिए आप भी तेल देखिये और तेल की धार देखिये।(विनायक फीचर्स)

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