मनोरंजन

मेरी कलम से – डा० क्षमा कौशिक

जागती हो संग तारों के वृथा विहंगिनी,

छिप गया है चांद तुम से रूठ कर हे कामिनी।

चांद तो हो रहा मगन, यामा संग अभिसार मे

तुम भले तकती रहो एकटक  मिलन की।

<>

सुख छलिया ही रहा ….

सदा रहा न साथ

दुख भी थोड़े समय का

नही रहेगा साथ,

पतझर भी रहता नहीं

कहां सदा मधुमास

धूप छांव है जिंदगी

तू क्यों हुआ उदास।

– डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

हिंदी अपनी भाषा है- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

मेरा देश महान है – कौशल कुमार सिंह

newsadmin

कविता – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment