पैसा पैसा तू करता है, पैसे पे मरते देखा,
पैसो की खातिर हमने जग मे लोग बिखरते देखा।
जिंदगी मे आज देखा क्यों फीके रिश्ते लगते हैं,
कैसे लड़ते हैं आपस मे लोग मुकरते देखा।
टूटे रिश्ते भाई भाई के बँटवारे को लेकर,
बँटवारे की खातिर मैने अपनो को लड़ते देखा।
बेचे नारी अस्मत अपने भूखे बच्चो की खातिर,
बाजारों मे अब भी हमने नारी को बिकते देखा।
ठंडी रातों में गुजरे हाय अब गरीबों की रातें,
बिन रजाई के वो तड़फे सड़कों पर ठिठुरते देखा।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़