मौन हूँ अनभिज्ञ नही’, ये करुण कथायें रहने दो
मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो।
मैं सृजनशक्ति , नित कर्मशील
अन्वेषा हूँ , मैं बुद्धिमती
अभिमान रहित, मैं स्नेहसिक्त
दुर्गा भी मैं , मैं पार्वती
अन्तस में मेरे प्रश्न कई , अब प्रश्न मुझे भी करने दो
मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी , निर्बाध गति से बहने दो
मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं , ये करुण कथायें रहने दो।
संघर्षो के उपरांत सदा
हर विजयगीत गाया मैंने
संबंधों में भी प्रेम नहीं
नित दंश , दाह पाया मैंने
आघातों से संतप्त हृदय को , स्वयं चिकित्सा करने दो
मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो
मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं ,ये करुण कथायें रहने दो।।
– प्रीति त्रिपाठी, दिल्ली