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कुमाऊँ का हरिद्वार है रानीबाग – दीपक नौगाई

neerajtimes.com – काठगोदाम से ऊपर की ओर चले तो प्रकृति व वातावरण दोनों  में बहुत परिवर्तन है। एक ओर पहाडिय़ां शुरु है , तो दूसरी ओर नीचे घाटी में गौला नदी बहती चली जाती है। यही पर है रानीबाग जिसका कागजों में एक नाम चौघानपाटा भी है। आस्था और पौराणिक महत्व के कारण इसे कुमाऊं का हरिद्वार भी कहा जाता है।

रानीबाग अति रमणीक घाटी है। हालांकि बीते बीस सालों में बसासत बहुत बढ़ गयी है। खेतों मे अब मकान बन गये हैं। अंग्रेजी शासन काल में रानीबाग पहाड़ की ओर पैदल यात्रा करने वालों का प्रमुख पड़ाव हुआ करता था। सत्रहवीं सदी में चित्रशाला घाट मार्ग पर बने ऐतिहासिक जसुली देवी धर्मशाला में रात्रि विश्राम कर लोग आगे की यात्रा करते थे। पैदल पथ से रानीबाग से अल्मोड़ा 37 मील, रानीखेत 34 मील और नैनीताल की दूरी 11 मील थी। उस दौर में चाय, मिठाई, राशन की दुकानें, घोड़ो की नाल लगाने, जीन सिलनें की दुकानें खूब चला करती थी।

रानीबाग कत्यूरी रानी मौला देवी की शरण स्थली रही है। चौदहवीं सदी में कुमाऊं में कत्यूरी राजा प्रीतमदेव का शासन था। मौला देवी उसकी दूसरी पत्नी थी, जो किसी बात से नाराज होकर रानीबाग चली आई और लगभग 12 वर्ष यहाँ रही। उसने यहाँ सेना का गठन भी किया। रानी ने यहाँ  विशाल बाग लगाया, इसलिए गाँव का नाम रानीबाग पड़ा।

एक बार रोहिल्लो के सरदार ने रानी को गार्गी नदी में स्नान करते हुए देख लिया। उसने रानी का पीछा किया। रानी नदी के ऊपर स्थित गुफा में जाकर छिप गई। रानी को बंदी बना लिया गया। जब यह सूचना प्रीतम देव के पास पहुंची तो उसने भतीजे ब्रहम देव को भेज कर रानी को कैद से आजाद कराया।

कालांतर में मौला देवी ने पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दुलाशाही रखा गया। जब प्रीतम देव की मृत्यु हुई तब दुलाशाही बहुत छोटा था। अत: मौला देवी ने संरक्षक बनकर स्वयं शासन किया। तब कुमाऊं में मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग होता था। मोला देवी राजमाता थी, इसलिए वहां वे जिया रानी कहलायी।

रानीबाग में बसाहट की शुरुआत अंग्रेजी शासन काल में ही हुई। सबसे पहले साह और चौधरी लोग आए। उसके बाद नौगाई, गोस्वामी आदि परिवार यहाँ बसे। 1862 मे जब कुमाऊं में लोहा कंपनी काम करती थी,  तब रानीबाग का कोयला बहुत अच्छा समझा जाता था। लौह भट्टियों मे कोयले का इस्तेमाल होता था।

कुमाऊं मे 28 वर्षों तक कमिश्नर रहे सर हैनरी रैमजे ने 1866 मे अंग्रेजों के ठहरने के लिए यहाँ एक डाक बंगला बनवाया, जो आज पी.डब्लयू.डी.गेस्ट हाउस के रुप में मौजूद है। उसी दौर में बलिया नाले के ऊपर झूला पुल का निर्माण भी हुआ। यह पुल साठ के दशक में चंदादेवी की पहाडियों पर हुए भूस्खलन के कारण टूट गया

रानीबाग धार्मिक स्थल है। उत्तरायणी के अवसर पर यहाँ दिन और रात का मेला लगता है। कत्यूरी वंशज जिया रानी को याद करते हुए उनकी स्मृति में जागर लगाते है। जिया रानी की गुफा सहित, चित्रशिला, चित्रेशवर मंदिर, शीतला माता मंदिर, कामाक्षा शिला दर्शनीय स्थल है। रानीबाग से पश्चिम उत्तर दिशा मे पाँच किलोमीटर दूर मार्कण्डेय श्रृषि का तप कुण्ड भी दर्शनीय है। (विभूति फीचर्स)

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