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चले के पड़ी – अनिरुद्ध कुमार

समय के ताल पे चलेके पड़ी,

जीयला खातिरो मरेके पड़ी।

 

बइठलासे इहाँ मिलेला कहाँ,

भूख आ प्यास से लड़ेके पड़ी।

 

रात दिन मेहनत इहाँके चलन,

जानलीं बात कुछ करेके पड़ी।

 

एकरे के सबे कहे जिंदगी,

आसके पाँख पर उड़ेके पड़ी।

 

हो गुजारा इहाँ रहीं शान से,

जे करब ऐहिजी भरेके पड़ी।

 

सोंच के डेग धरब दुनिया हवे,

हो न जाये गलत डरेके पड़ी।

 

जिंदगी जानली तपस्या हवे,

सब इहें छोड़के चलेके पड़ी।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड

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