ओ बसंत की चपल हवाओं, फागुन का सत्कार करो।
अलसाए जन-जन के तन-मन, ऊर्जा का संचार करो।।
बीत गई है शरद-शिशिर ॠतु, गरमी अब है आने को।
आने वाले अंतराल में, सारे गम हैं जाने को।।
पीली सरसों फूट पड़ी है, कनक सुनहरी है तैयार।
रंग-रँगीले इस मौसम में, प्रकृति करे नूतन शृंगार।।
अभिलाषा भरपूर फसल की, कृषक जनों को हुलसाती।
एक नए सुखमय जीवन की, उनमें नव उम्मीद जगाती।।
आने वाली नई फसल से, कृषकों के भंडार भरें।
राष्ट्र प्रगति में योगदान को, भूमिपुत्र भी जतन करें।।
चहुँ दिश खिलते लता-पुष्प अब, जनजीवन रंगीन हुआ।
मंजरियाँ लग रही मनोरम, दृश्यों ने हर हृदय छुआ।।
कमल खिल रहे ताल-सरोवर, भाँति-भाँति के पुष्प खिले।
वन-उपवन में कूकें कोयल, सँग भँवरों की तान मिले।
ढोलक झाँझ मँजीरों के संग, फाग सभी मिल गाएंगे।
चित्त-प्रफुल्लित होंगे सबके, सर्व कष्ट मिट जाएंगे।।
नर-नारी आबाल-वृद्ध अब, सराबोर हों रंगों में।
एक नवल ऊर्जा आयेगी, शिथिल पड़े सब अंगों में।।
एक नया संकल्प साथ ले, सभी व्यक्ति होंगे तैयार।
उल्लासित इंसान बढ़ेगा, रचने को विकसित संसार।।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश