लीक पर लीक की लाइन लगी,
बुझी आशा जो थी मन में जगी।
परेशान आज इससे युवा वर्तमान है,
बेरोज़गारी कर रही खूब सम्मान है।
निकलती हैं रिक्तियां बड़े जोर से,
छपते हैं विज्ञापन बड़े शोर से।
कीर्तिमान के बजते घड़ियाल हैं ,
लेकिन व्यवस्था से बड़े देश में दलाल हैं।
परीक्षा से पहले लीक होते पेपर,
दावे होते खोखले व्यवस्था बे पर।
लीक में भी बन रहा कीर्तिमान है,
इसका हमें क्या जरा भी गुमान है।
पाई पाई जोड़कर बच्चे करते तैयारी,
झेलते घर से दूर तमाम दुश्वारी।
गरीबों को दूर दिखता मुकाम है,
अब पढ़ाई नहीं पैसों का काम हैं।
जागो देश की सोती व्यवस्था,
लीक में निकल रही है अवस्था।
भाषण से न चलने वाला काम है,
इसके कारण देश हो रहा बदनाम है।।
– हरी राम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश