मनोरंजन

ग़ज़ल – अनिरुद्ध कुमार

नजरिया उहे पर नजारा नया बा,

बुझावत चलस देश सारा नया बा।

 

इहे रात दिन के बनल बा फसाना,

निशाना कहीं पर इशारा नया बा।

 

इरादा सदा फायदा कायदा में,

जुड़ावस जिया बोल सारा नया बा।

 

सबे जी रहल अब कहाँ बा गरीबी,

नया खोज बावे इबारा नया बा।

 

सदा रहनुमा बन दिखावस उजाला,

कहस चाँद तारा सितारा नया बा।

 

इहाँ मौज ही मौज बा जिंदगी में,

जतावस हमेशा पसारा नया बा।

 

अभावे गुजारा तड़प बेकरारी,

सदा छटपटाई उबारा नया बा।

 

बनल जे मसीहा सुनावे कहानी,

उहे दरद बावे पुकारा नया बा।

 

बुरा हाल’अनि’ देख आँसू बहावे,

गरीबी उहें शिर्फ़ नारा नया बा।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

Related posts

मन की जब गांठें खुल जाएं – ज्योत्स्ना जोशी

newsadmin

इंतजार – इंद्रसेन यादव

newsadmin

अनजान राहें – राधा शैलेन्द्र

newsadmin

Leave a Comment