जरुरी तो नहीं
हर तपस्या जंगल से हीं प्रारम्भ हो
एक दूसरे से दूर रह के इन महीनों में
एक तपस्या हमने भी तो की हैं
मेरी जिंदगी तुमने………
तुम्हारी जिंदगी मैंने जी हैं……..
तपस्या मौन की
तपस्या शोर की
तपस्या इंतजार की
तपस्या समझौते की
तपस्या जुदाई की
तपस्या एतबार की……..
तपस्या समर्पण की
तपस्या मर्यादा की
तपस्या अभिव्यक्ति की
तपस्या राग की
तपस्या वैराग की
तपस्या उलझी हुई पहेली की……..
तपस्या अगर इस ‘पार्वती’ की है
तो प्रतीक्षा मेरे ‘शिव’ की रही होंगी
वक्त यूँ नहीं कटा लम्हों में
सफर में निशान तो
‘हम दोनों’ के हीं होंगे!
– राधा शैलेन्द्र, तिलकामांझी, भागलपुर, बिहार