मनोरंजन

बसंत – झरना माथुर

कोपलों पे छाई तरुणायी रितु बसंत की आई है,

भोर दुल्हन सी यूं शरमाई सांझ की अपनी, रानाई है।

 

ओढ़ी धरा ने पीली चूनरियां शाख पे किसलय आई है,

कूकती कोयल हुई मतवारी  पवन के संग इठलाई है।

 

उर हुआ है कैसा चंचल पांव में थिरकन क्यों जागी,

प्रेम की ज्वाला जले मन में छवि कान्हा की बसाई है।

 

रितु राजा का सुहाना मौसम  होली नवरात्रि लाया है,

सरस्वती मां का करो सब वंदन नव-संवत्सर लाई है।

– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

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