मनोरंजन

खिल गया दिग दिगंत – सत्यवान सौरभ

आ गया ऋतुराज बसंत।

प्रकृति ने ली अंगड़ाई,

खिल गया दिग दिगंत।।

 

भाव नए जन्मे मन में,

उल्लास भरा जीवन में।

प्रकृति में नव सृजन का,

दौर चला है तुरंत।

खिल गया दिग दिगंत।।

 

कूकू करती काली कोयल,

नव तरुपल्लव नए फल।

हरियाली दिखती चहुंओर,

पतझड़ का हो गया अंत।

खिल गया दिग दिगंत।।

 

बहकी हवाएं छाई,

मस्ती की बहार आई।

झूम रही कली-कली

खुशबू हुई अनंत।

खिल गया दिग दिगंत।।

 

सोए सपने सजाने,

कामनाओं को जगाने।

आज कोंपले कर रही,

पतझड़ से भिड़ंत।

खिल गया दिग दिगंत।।

-डॉ. सत्यवान सौरभ 333, परी वाटिका,

कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी)

भिवानी, हरियाणा – १२७०४५,

Related posts

भाई-बहन के प्यार, जुड़ाव और एकजुटता का त्योहार भाई दूज – प्रियंका सौरभ

newsadmin

मन मेरा बड़ा पछताया – मुकेश कुमार

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment