मनोरंजन

कशिश – ज्योत्सना जोशी

दूरियों की कशिश

इस क़दर बेशकीमती है,

कि मिलना किसी अन्तराल को

भर देने की एक नाकाम कोशिश

मात्र है,

जबकि रिक्त कुछ है ही नहीं

तेरे होने में जितनी बातें हुई हैं

उससे कई गुना बातें मैंने खुद से

तुझे मान कर की हैं।

एक धीमी सी आहट पाज़ेब पहनकर

ज़ेहन में कहीं खनकती रहती है

चांदनी की खूबसूरती दिखाई

कहां देती है ?

बस अंतस के आंखों से

महसूस की जाती है।

– ज्योत्सना जोशी ज्योत, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

कोई बताए – डॉ० भावना कुँअर

newsadmin

मनहरण घनाक्षरी – मधु शुक्ला

newsadmin

अम्बेडकर नगर के एक मात्र वीर चक्र विजेता है धनुषधारी सिंह- हरी राम यादव

newsadmin

Leave a Comment