घर की दीवारें सब सुनती हैं
बस ध्यान रखें, जब भी बोलें !
कब क्या कहना, इस पे विचारें…..,
और बहुत सोच समझके ही बोलें !!1!!
वक़्त बदला, बदलें हैं लोग
अब नहीं रही वो स्थिति पुरानी !
लोग घर बैठे ही सब सुन लेते हैं……,
रखनी होगी हमें सावधानी चौगुनी !!2!!
अब सब पर्दे बेपर्दा हो चुके
कहां बैठ पाते बे-तकल्लुफ़ी से अभी !
हम थक चुके अपनों से ही…..,
कहां कर पाते बातें बेफ़िक्री से सभी !!3!!
उठ चुका विश्वास अपनों से ही
अब रहे नहीं उन्मुक्त घर पर भी !
सभी कान पे कान धरे हैं सुनते….,
फिर करते हैं बुराई मिलकर सभी !!4!!
पारदर्शिता कहां बची रही रिश्तों में
और बढ़ रहा है आपस में अविश्वास !
अब घर की दीवारें भी हैं महफूज़ कहां…..,
खो रहे हैं हम आपस में ही धैर्य विश्वास !!5!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान