इश्क मे कटने लगी है जिंदगी,
बेवफा लगने लगी है जिंदगी।
रह रहे है लोग घर परिवार मे,
फिर सहे जाते कटी है जिंदगी।
मिल गयी है आँख तुमसे क्या करे,
आज जीना आशिकी है जिंदगी।
प्यार मे तेरे हमे रोना पड़ा,
दिल को मेरे खल रही है जिंदगी।
छोड़कर बेटा गये हो शहर,
बिन तुम्हारे अब बुझी है जिंदगी।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़