मनोरंजन

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

इश्क मे कटने लगी है जिंदगी,

बेवफा लगने लगी है जिंदगी।

 

रह रहे है लोग घर परिवार मे,

फिर सहे जाते कटी है जिंदगी।

 

मिल गयी है आँख तुमसे क्या करे,

आज जीना आशिकी है जिंदगी।

 

प्यार मे तेरे हमे रोना पड़ा,

दिल को मेरे खल रही है जिंदगी।

 

छोड़कर बेटा गये हो शहर,

बिन तुम्हारे अब बुझी है जिंदगी।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़

Related posts

एक वैश्या का कटाक्ष – मुकेश कुमार

newsadmin

कविता – मधु शुक्ला

newsadmin

सिंधिया और शिवराज पर भरोसे के निहितार्थ – राकेश अचल

newsadmin

Leave a Comment