वर्षों की तपस्या का सुख अपार है,
श्रीराम हमारे जग में तारणहार है।
कण कण में राम जन जन में राम,
रूप सलौना जिनका निराकार है।
सत्य की जीत हुई मगर देर बाद,
लेकिन पुलकित हुआ आज संसार है।
कब से निष्फल बना था निर्णय ये,
मुददत बाद आज हुआ साकार है।
निर्मल बहती सरयू से निकल रही,
कारसेवकों के रुधिर की पुकार है।
बलिदान बन कर रहा सुखद आज ,
प्रभु राम की ये माया अपरम्पार है।
गूंज रही अयोध्या राम के नारों से,
यही तो राम विरोधियों की हार है।
निराश मन हुआ गर्वित आज फिर ,
राम मेरे विराजमान सरयू पार है।
– विनोद निराश, देहरादून (स्वरचित)