बड़ी हो रही है हमारी दुलारी,
रखे प्रश्न की साथ हरदम पिटारी।
सदा पूछती काम माँ ही करे क्यों,
दिखे हर समय क्यों दुखी यह बिचारी।
नहीं ज्ञान की क्यों हमें है जरूरत,
बना के रखी राज दादी हमारी।
बहुत भा रहे हैं हमें प्रश्न उसके,
सजाये सँवारे खयालात प्यारी।
बहुत नाज से पालते बेटियाँ हम,
रखें आस इनसे बनें शान नारी।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश