Neerajtimes.com – गुरुजी का जनम पौष सुदी सप्तमी संवत 1723 को पिता श्री गुरु तेगबहादुर व माता गुजरी की कोख से पटना शहर में हुआ। जनम के समय दाई और माता नानकी (दादीजी) ने गुरुजी के चमकते-दमकते मस्तक के विलक्षण लक्षणों से अनुभव कर लिया कि यह बालक कोई साधारण नहीं है बल्कि परमेश्वर की शक्ति रुप धारण करके आई है क्योंकि जनम के समय गुरुजी अन्य बालकों की तरह रोए नहीं बल्कि उनके कोमल चेहरे पर नूरी मुस्कराहट थी। जनम के समय ऐसा प्रचंड प्रकाश हुआ कि चंद्रमा का प्रकाश भी धीमा लग रहा था।
जैसे-जैसे लोगों को पता चला वैसे-वैसे वे माता नानकी को बधाईयां देकर खुशियां प्रगट करने लगे। ढोलक-शहनाई और खुशियों के अनेक प्रकार के साज बजने लगे। भट्ट, मंगते व शहनाई वादक आकर बधाईयां देने लगे और मुंह मांगा दान प्राप्त कर खुशियों से साहबजादे की बड़ी उम्र की दुआएं देने लगे। साहिबजादे की शोभा सुनकर शहर का प्रसिद्ध ज्योतिषी जनम पत्री लेकर आया और लगन मुहुर्त देखकर माताजी को बधाई देते हुए बोला कि जनम के समय ऐसा श्रेष्ठ लगन मैंने पहले कभी नहीं देखा ! यह बालक बड़ा परोपकारी व लोगों के दुख दर्द दूर करने वाला होगा। संसार में इसका बड़ा यश फैलेगा तथा सारे संसार का पूज्य होगा। इस बालक को शस्त्र विद्या से बड़ा प्यार होगा तथा बड़े घमासान युद्ध करके अधर्मियों का नाश करेेगा। जिस लगन में बालक का जनम हुआ है उसमें युद्ध करने के बहुत संकेत हैं। जालिमों का नाश करके धर्म की स्थापना करेगा, विद्या में बड़ा पंडित और विद्वानों का बड़ा कदरदान होगा। ज्योतिषी से बालक के शोभायुक्त गुण सुनकर माताजी व सारा परिवार अति प्रसन्न हुआ तथा ज्योतिषी को धन-दान देकर प्रसन्न किया। आगे चलकर इसी बालक श्री गुरु गोबिंदसिंघ ने अत्याचार व अन्याय के खिलाफ ‘खालसा पंथ’ की स्थापना कर अनेक युद्ध लड़कर अपने सर्वंश की कुर्बानी दी।
प्रभु गुणगान से यश की प्राप्ति-
श्री गुरु गोबिंदसिंघ महाराज सभा में विराजमान थे व सिख संगत उनके पवित्र दर्शन करके आनंद प्राप्त कर रही थी।
गुरुजी ने संगत से प्रश्न किया जिस समय भगत कबीर जी हुए हैं उस समय देश का राजा कौन था ? सभा में बैठे हुए विद्वान पुरुष विचार करने लगे व उनमें से एक ने कहा कि उस समय देश का राजा हुमायू था, दूसरे ने पथोराराव, तीसरे ने सिकंदर, चौथे ने मदनलाल और पांचवे ने जैन राजा बताया। इस तरह सभी अलग-अलग बताते गए और गुरुजी चुपचाप सुनते रहे। जब सभी शांत हो गए तब गुरुजी ने फरमाया परमात्मा का नाम जपने वाले ही सबसे ऊंचे हैं और उन्हें कोई भुला नहीं सकता। कबीर भगत का नाम सबको मालूम है पर उस समय का राजा कौन था यह कम लोगों को मालूम है। कहां गरीब जुलाहा और कहां मुल्क का बादशाह ! जात, वर्ण, पद और पातशाहीयां सब परमात्मा के नाम जपने वालों से नीचे रह जाती हैं। जुलाहे जात के निर्धन भगत कबीर, उनकी पत्नी माता लोई और पुत्र कमाल परमात्मा का नाम जपने के कारण ज्ञानी, विद्वान, साधु, सन्यासी, गृहस्थ एवं राजा सभी उन्हें जानते हैं परंतु उसी देश के राजा को कोई नहीं जानता। बाणी भी कहती है-
”बुनना तनना तिआगि कै, प्रीति चरन कबीरा।। नीच कुला जोलाहरा, भइओ गुनीय गहीरा।।ÓÓ अर्थात गुणों का समुद्र हो गया। इसलिए ‘परमात्मा का नामÓ और ‘परमात्मा का नाम जपने वालेÓ धन्य हैं, सबसे ऊंचे हैं व उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। वहीं जो संसारी प्रपंचों में फंसकर सुखदाई परमात्मा का नाम नहीं जपते उन्हें हमेशा हानि व अपयश ही मिलता है-
”कोठे मंडप माड़ीआ, लाइ बैठे करि पासारिआ।। चीज करनि मनि भावदे हरि बुझनि नाही हारिआ।।ÓÓ
भगत कबीर के समय सिकंदर लोधी देश का बादशाह था। ईष्र्या वादी पंडितों और काजियों की शिकायत पर सिकंदर बादशाह ने भगत कबीर जी के हाथ-पैर बंधवाकर हाथी के पैरों तले कुचलवाना चाहा परंतु तीनों बार ही हाथी अपनी सूंड द्वारा कबीर जी को नमस्कार कर पीछे हट गया। फिर भी विरोधियों की ईष्र्या नहीं थमी और सिकंदर बादशाह ने दूसरी बार भगत कबीर जी को जंजीरों से बंधवाकर गंगा के बहाव में फिकवा दिया परंतु गंगा की तीव्र लहर से भगत कबीर जी की जंजीर टूट गई और सभी ने देखा कि मृगशाला पर चौकड़ी लगाए। परमेश्वर के ध्यान में मग्न हैं-
”गंग गुसाइन गहिर गंभीर, जंजीर बांधि करि खड़े कबीर।।
गंगा की लहिर मेरी टूटी जंजीर, मृगशाला पर बैठे कबीरÓÓ (श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पृ. क्र. 1162)
सिकंदर बादशाह ने परमात्मा के प्यारे भगत कबीर की शक्ति देखकर उनके पैरों पर सिर रखकर माथा टेका।
इस साखी से हमें यही सीख मिलती है कि जो परमात्मा की स्तुति व सच्चा प्यार करता है एवं सत्व्यवहार पर चलता है, परमात्मा परलोक के साथ-साथ उन्हें इस लोक में भी सुख, यश-कीर्ति व सामयिक सहायता प्रदान करता है।
इसलिए सभी को प्रभु परमात्मा का गुणगान करना चाहिए। जो हमेशा शुभ कर्म करते हुए प्रेमभाव से परमात्मा के नाम का सिमरन,गायन करते हैं व तन से संतों-महात्माओं की सेवा कर उनको प्रसन्न करते हैं वे ही परमात्मा को प्यारे लगते हैं।
ऐसे महान अवतार श्री गुरु गोबिंदसिंघ जी को उनकी 357 वीं जयंती पर शत-शत नमन। (विनायक फीचर्स)