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गीतिका – मधु शुक्ला

हम आप जी रहे हैं, परिवार के सहारे,

होते हमें जगत में, अपने सदैव प्यारे।

 

परिवार बाँटता है, सहयोग त्याग ममता,

दौलत अमोल घर को, मानव हृदय पुकारे।

 

जब मुश्किलें सतायें, मानव हताश होता,

परिवार की दिलासा, पथ जिंदगी सँवारे।

 

आशीष शक्ति जग में, सबसे महान होती,

व्यक्तित्व आदमी का,यह शक्ति ही निखारे।

 

कुछ भी नहीं जगत में, परिवार से बड़ा है,

परिवार साथ कटते, दिन चैन से हमारे।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

 

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