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प्रतिभा सम्पन्न साहित्य साधक हैं डॉ. धर्मवीर भारती – डॉ. परमलाल गुप्त

Neerajtimes.com – डॉ. धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, आलोचक, निबंधकार और सम्पादक के रूप में उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनेक नये प्रयोग किए और उन पर अपने तेजस्वी बौद्धिक व्यक्त्वि की छाप अंकित की। उनका बचपन इलाहाबाद में व्यतीत हुआ और वहीं उन्हें साहित्य रचना की प्रेरणा प्राप्त हुई। डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया। इसके बाद वे साप्ताहिक ‘धर्मयुग’  के सम्पादक बने। देश-विदेश की अनेक यात्राओं से उन्होंने अपने अनुभव को समृद्ध किया।

हिंदी-साहित्य में उनकी बहुमुखी देन को भुलाया नहीं जा सकता, उनके कविता संग्रह ठंडा लोहा, गीतिनाट्य-अंधा युग, उपन्यास-गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, कहानी-नदी प्यासी थी, चांद और टूटे लोग, बंद गली का आखिरी मकान, यात्रा संस्मरण- यादें यूरोप की, आलोचना-प्रगतिवाद एक समीक्षा, सिद्ध साहित्य, निबंध संग्रह-ठेले पर हिमालय, मानव मूल्य और साहित्य आदि काफी लोकप्रिय हुए।

डॉ. धर्मवीर भारती का साहित्य जनरुचि के भाल पर लगा हुआ सिन्दूर है। भारतीजी साहित्य में ऐसे रंगीन स्वप्नों की सृष्टि करते हैं, जिसमें दम घोंटने वाले बेबसी के बादल न हों। वे नवयुग की नवचेतना के वाहक साहित्यकार हैं। वे स्वच्छंदतावादी होने के कारण व्यक्ति स्वातंत्र्य के पक्षधर हैं। घटना की अपेक्षा वे व्यक्ति को अधिक महत्व देते हैं। उनके मतानुसार  जहां व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति में पूर्ण एवं शुद्ध होगा, वहां उसकी स्वतंत्रता अराजक न होकर स्वस्थ होगी। डॉ. भारती के साहित्य में आत्माभिव्यंजना ही प्रधान है। उसमें बाह्मï घटनाएं गौण हैं और अंदर का तूफान प्रमुख है। वे भावनाओं के सहज-मधुर अंत:स्पर्शी इन्द्रलोक के से वैभवपूर्ण सूक्ष्म सौंदर्य जगत में विचरण करते हैं। उनकी कविता जहां भावना की बांहे खोलकर पाठकों को रसानुभूति के पाश में समेट लेती हैं, वहीं उनके उपन्यासों और कहानियों में भी वह भावना कल्पनालोक का सतरंगी वितान तानकर क्रीड़ा करती दिखाई देती है।

डॉ. भारती ने शिल्प के अनेक प्रयोग किए हैं। कविता में उन्होंने सुन्दर-असुन्दर सबको गले लगाकर नये उपमानों और प्रतीकों की योजना की है और नयी व्यक्तिवादी चेतना से संयुक्त हृदय के विभिन्न स्वर दिए हैं। काव्य के क्षेत्र में ‘अन्धा युग’  का शिल्पगत वैशिष्टय अलग दिखाई देता है। ‘सूरज का सातवां घोड़ा’उपन्यास में कहानी रूप और साहित्य के समवेत शिल्प का विन्यास हुआ है। डॉ. भारती की कहानियां एक स्वाभाविक विकासशील धारा की भांति नहीं, बल्कि घुमडऩे वाली वर्तुलाकार जल के भंवर की तरह हैं। डॉ. भारती के निबंधों में भी शिल्प का वैशिष्ट्य है। ‘ठेले पर हिमालय’ निबंध-संग्रह में उन्होंने गद्य की प्राय: सभी अधुनातन विधाओं का प्रयोग किया है। उन्होंने ललित निबंध भी लिखे  हैं और नव चिन्तन की गंभीरता को भी अपने निबंधों में पिरोया है। डॉ. भारती के भाषा संबंधी प्रयोग भी विशिष्टता, नवीनता और ताजगी लिए हुए हैं।

डॉ. धर्मवीर भारती आधुनिक युग के एक उच्च कोटि के निबंधकार हैं। उन्होंने आधुनिक युग की प्रमुख समस्याओं पर निबंध लिखे हैं। इन निबंधों  में भारतीजी के मानव-चेतनावादी चिन्तन की छाप है। भारतीजी अतिवादी दृष्टिकोण से दूर स्वस्थ मानवता के विकास के निर्भीक प्रवक्ता हैं। उनके निबंधों की प्रमुख विशेषता है अपने दृष्टिकोण के अनुरूप समस्या के मूल तक पहुंचना। भारतीजी के निबंध उनके मौलिक चिन्तन से युक्त हैं। उनके निबंधों में उनके व्यक्तित्व की छाप है। भारतीजी मूल रूप से कवि हैं।   आत्माभिव्यंजना और वैयक्तिक दृष्टिकोण के कारण उनके निबंध विचारात्मक होते हुए भी प्रगीत की अनेक विशेषताओं से युक्त हैं। भारतीजी के निबंधों को मोटे तौर से दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-

  1. भावात्मक ललित निबंध- ‘ठेले पर हिमालय’ के निबंध इसी कोटि के हैं। इन निबंधों में डॉ. भारती ने गद्य की अनेक विधाओं का प्रयोग किया है और अनेक शैलियों को अपनाया है। इन निबंधों में कहानी-सी रोचकता और प्रगीत-सी सरसता मिलती है।
  2. चिन्तन मूलक निबंध- ‘मानव मूल्य और साहित्य’ के निबंध गंभीर वैचारिकता लिए हुए हैं। ये निबंध जीवन और साहित्य से सम्बद्ध हैं। इन निबंधों में चिन्तन की गहराई के साथ अनुभव का संयोग है।

डॉ. भारती का अनुभव अत्यंत व्यापक है, उनका हृदय संवेदनशील है और उनमें चिंतन की गहराई में प्रवेश करने की क्षमता है। शैलियों के वे विशेष प्रयोक्ता हैं। ये सब विशेषताएं उनके निबंधों में उतर आयी हैं। डॉ. धर्मवीर भारती ने निबंधों में अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों में प्रमुख हैं-

  1. आत्म कथात्मक शैली, 2. भावात्मक शैली, 3. संस्मरणात्मक शैली, 4. व्यंग्यात्मक शैली, 5. वार्ता शैली, 6. प्रश्न शैली, 7. स्मृत्याभास शैली, 8. वर्णनात्मक शैली, 9. विचारात्मक शैली, 10. विवेचनात्मक शैली आदि।

डॉ. भारती के एक ही निबंध में अनेक शैलियां मिलती हैं। उदाहरणार्थ ‘ठेले पर हिमालय’ निबंध में प्रारंभ में भारतीजी वार्ता और प्रश्न द्वारा शीर्षक पर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करते हैं। फिर मित्र का एक संस्मरण सुनाते हैं। कथन में  नाटकीय रोचकता आ जाती है। इसके बाद बिना नाम लिए बच्चन जी की कविता ‘चोटी और बर्फ’ के संदर्भ में विनोद करते हैं निबंध का परिवेश एकदम घरेलू आत्मीयता से परिपूर्ण हो जाता है। आगे वे स्मृत्याभास शैली में कोसानी यात्रा का वर्णन करने लगते हैं। इसमें  उन्होंने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। वस्तु से रागात्मक संबंध उन्हें भावात्मक और कवित्वमयी शैली की ओर खींच ले जाता है। वर्णन में चित्रात्मकता और भावात्मक प्रवाह आ जाता है यथा-‘पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों-जैसे खेत, सुन्दर गेरू की शिलाएं काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते,  जिनके किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेल की लडिय़ों जैसी नदियां। मन में बेसाख्ता यही आया कि इन बेलों की लडिय़ों को उठाकर कलाई में लपेट लूं, आंखों से लगा लूूं।Ó (ठेले पर हिमालय) अंत में शहरी जीवन की विडम्बना पर अपने हृदय  की टीस व्यक्त करता हुआ लेखक मित्रों से वार्तालाप करने के ढंग से विदा लेता है। सम्पूर्ण निबंध एक रोचक संस्मरण के रूप में होकर भी प्रकृति और मानव के आज के संबंध पर प्रकाश डालता है।

डॉ. भारती की शैली में चिंतन के साथ भावावेश मिलता है। इसी कारण उनकी भाषा में भावात्मक तरलता, प्रवाह और शक्तिमत्ता आ जाती है। भारती जी शब्दों के पर्यायों द्वारा भाव की पुनरावृति करते हुए आवेश में पाठकों से प्रश्न करके और स्वयं भाव पर मुग्ध होकर या खीझकर कथ्य को मार्मिक बनाते हैं। कथ्य के साथ भारतीजी के हृदय का रागात्मक संबंध होता है। इसलिए बार-बार उनका हृदय छलक पड़ता है। आत्माभिव्यंजना के लिए अवसर खोजता रहता है। रागात्मकता भारती जी को संस्मरण की और खींच ले जाती है। भारतीजी चित्रमयी भाषा में संस्मरण सुनाने लगते हैं।

उनकी संस्मरण शैली का यह उदाहरण देखें-‘उतरते  फाल्गुन चढ़ते बैशाख के दिन थे। नर्मदेश्वर जी और शिवनाथ जी भोर में ही मुझे उठा देते थे और फिर हम लोग हिन्दी भवन के पीछे खड़े होकर पंडित जी (हजारी प्रसाद द्विवेदी) की प्रतीक्षा करते थे। भोर के धुंधलके में प्रार्थना-प्रांगण की ओर जाते हुए नर्मदेश्वर और शिवनाथजी से तमाम दुनिया की बातें करते हुए। पंडितजी को यह क्या मालूम था कि धीरेंद्रजी का भेजा हुआ यह दुबला-पतला संकोची स्वभाव का शोध-छात्र (धर्मवीर भारती) जो चुपचाप पीछे चल रहा है, (निगाह बचाकर शिरीष का एक झब्बेदार फूल भी तोड़ लेता है)। इस शैली के कारण डॉ. धर्मवीर भारती के निबंध व्यक्ति प्रधान निबंधों की विशेषताओं से युक्त हो गए हैं। डॉ. भारती के चिन्तन में भी वैयक्तिक्ता की छाप है। इसी कारण भारतीजी के निबंधों में चिन्तन की गंभीरता के साथ रोचकता और सरसता का दुर्लभ संयोग हुआ है। भारती जी के निबंधों में व्यंग्य-विनोद  का भी अच्छा पुट मिलता है। व्यंग्य की तीक्ष्णता देखिए-हमें आश्चर्य नहीं होता जब हम पाते हैं कि उसी पाखण्ड का एक अदना भारतीय प्रवक्ता माक्र्सवाद का झंडा हाथ में लेकर मारिजुआना की तिजारत और मानसिक ऐय्याशी की वकालत करता नजर आता है।  डॉ. भारती के निबंधों की भाषा मिश्रित प्रवाहमयी भाषा है। उसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता है। परंतु अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि के प्रयोग स्वेच्छापूर्वक मिलते हैं। खास, ताकत,

दौर, सैलाब, अदना, तिजारत, ऐय्याशी, वकालत, नजर, अदालत, एहसास, नामवरी, तमाम, खूब, बेसाख्ता, रेडगार्ड, बीटानिक आदि अनेक विदेशी शब्दों के प्रयोग डॉ. भारती की भाषा में अनायास मिल जाते हैं। डॉ. भारती के वैचारिक निबंधों की भाषा अपेक्षाकृत गंभीर और तत्सम शब्द प्रधान है। डॉ. भारती की भाषा में कृत्रिमता जरा भी नहीं है। जहां उनका कवि सजग हो उठता है, वहां नये-नये उपमानों की सृष्टि करता है। भाषा में भावात्मक प्रवाह, लाक्षणिक वक्रता और चित्रात्मकता आ जाती है। डॉ. भारती की अप्रस्तुत योजना में भी नवीनता और मौलिकता है यथा-

  1. अमूर्त के लिए मूर्त अप्रस्तुत-निरर्थक विश्रृंखल क्षणों का सीमाहीन सैलाब मनु के जलप्लावन जैसा, अस्पष्टता की कुहेलिका आदि।
  2. मूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त अप्रस्तुत-बेले की लडिय़ों जैसी नदियां आदि।

कहीं-कहीं भावावेश के कारण डॉ. भारती के वाक्यों का पद क्रम अस्त-व्यस्त हो जाता है। डॉ. भारती ने भाषागत कई प्रयोग किए हैं और भाषा को समृद्धि दी है। वे भाषा के नये शिल्पी हैं और उनका भाषा पर पूर्ण अधिकार है। आधुनिक निबंधकारों में डॉ. धर्मवीर भारती का स्थान बहुत ऊंचा है। अपने मौलिक चिन्तन, शैली और शिल्प के प्रयोग और भाषा में नयी संवेदनशीलता उत्पन्न करने की दृष्टि से डॉ. भारती हिंदी निबंध, साहित्य में सदा याद किए जाते रहेंगे। उन्होंने हिंदी निबंध को नयी गति और ऊर्जा प्रदान की है। (विनायक फीचर्स)

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