मनोरंजन

दीप उनकी कब्र पे जलेंगे सदा – हरी राम यादव

आओ हम सब आज पढ़ें,

अपने आजादी के इतिहास को।

उन रणबीरों को हम याद करें,

जो कम कर गये अपनी सांस को।

जो कम कर गये अपनी सांस को,

जिससे देश हमारा आजाद हो ।

हम रहें या न रहें इस धरा पर ,

पर हमारा हिन्द जिंदाबाद हो।

हमारे मुल्क का हर आदमी ,

हर तरह से वतन में आबाद हो ।

कटें दासता की हर बेड़ियां,

हर ओर आजादी का शंखनाद हो।।

 

याद करें हम उस बलिदानी को,

हसरत जिसका नाम था।

मां की हसरत पूरी करना,

जिसका पहला काम था।

जिसका पहला काम था ,

वह शहीदगढ़ का शेर था।

अशफाक उल्ला खान वह,

धीर, वीर और बड़ा दिलेर था।

बिस्मिल संग लूट खजाना ,

काकोरी में उसने दिखा दिया।

गोरों  को  दे दिया चुनौती,

तुम उन्नीस तो हम बीस मियां।।

 

पीछे पड़ी दुष्ट गोरी सरकार,

खोज रही थी काकोरी के तार।

मिली थी मौके पर एक चादर,

उससे खुला राज का गागर।

उससे खुला राज का गागर,

थे उस पर धोबी के निशान।

लगा सुराग लखनऊ से,

शाहजहांपुर बना पुलिस मुकाम।

हो गया राज का पर्दा फाश,

जिसकी न बिस्मिल को आस ।

अपनी इस छोटी गलती पर,

दल कर रहा था पश्चाताप ।।

 

दीवानों ने छोड़ा घर बार,

क्योंकि आजादी से था प्यार।

बेष बदलकर घूम रहे थे ,

पीछे पड़ी पुलिस खाये खार ।

पीछे पड़ी पुलिस खाये खार,

आखिर पकड़े गए दीवाने।

चला मुकदमा काकोरी का,

लिए गये फैसले मनमाने ।

बिस्मिल ने खुद लड़ा मुकदमा,

वकील देख रहे बैठे पयताने।

ऐसी गजब की किया पैरवी,

जज चित हो गया चारों खाने।।

 

काला पानी  मिला किसी को,

किसी को मिली आजीवन कारा।

10-05 साल की सजा मिली,

किसी को, कोई जीवन हारा।

किसी को, कोई जीवन हारा,

नारा मां भारती का हुआ बुलंद।

गोरों ने अशफाक को लाकर,

फैजाबाद जेल में किया बन्द ।

दिया अनेकों लालच उनको,

बोले कर लो हमसे अनुबंध ।

हर राज़ बता दो अपने दल का,

घूमो तुम एकदम निर्द्ववन्द ।।

 

टस से मस न हुए खान,

बोले दुष्ट तुम सावधान ।

यदि आईंदा बोला ऐसे बोल,

खींच लूंगा मैं तेरी जुबान ।

खींच लूंगा तेरी जुबान,

कान में दूंगा शीशा घोल।

तुम भाड़े के टट्टू क्या जानो,

मातृभूमि की आजादी का मोल।

हम मां भारती के बेटे हैं,

आयेंगे हम अपनी मां के काम।

हम अपना शीश चढ़ाने निकले,

मातृभूमि के हित अबिराम।।

 

सन् सत्ताइस उन्नीस दिसम्बर,

रोयी धरती, रोया अम्बर ।

सरयू का पावन तट रोया,

रोया चांद और पीताम्बर ।

रोया चांद और पीताम्बर,

डाल गले में फांसी का फंदा।

कह इस जहां को अलविदा,

अगले जनम की आस में बंदा।

आसमान में बनकर ध्रुवतारा,

बिस्मिल से मिले अशफाक।

फैजाबाद भी अमर हो गया,

पाकर हसरत की ‘हरी’ खाक ।।

– हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश

Related posts

प्रेम – रोहित आनंद

newsadmin

ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

पत्रकार, कवि डा.महताब आज़ाद को मिला भागीरथ सम्मान 2022

newsadmin

Leave a Comment