कल आज और कल,
की तस्वीर को हकीक़त,
से रूबरू करा कर जीवन,
के पन्नों को उम्मीद की,
स्याही से रंगकर जीवन की,
दीवार पर कुछ निशान प्यार,
के पाकर मैं ठहर जाती हूँ।
अंर्तआत्मा की आवाज,
संग सुर से सुर मिलाती हूँ,
नयनों में अनगिनत रंगों का,
सैलाब जब मैं पाती हूँ तब,
अनगिनत रंग देकर बंद पन्नों,
को सजाकर एक चित्र,
प्रेम पर बनाती हूँ।
मोड़े गये पन्नो को,
कविता के शब्दमाला में,
अक्सर में सजाती हूँ,
कल आज और कल,
की रूप रेखा से जीवन रूपी,
पृष्ठ पर एक और कविता,
लिखने का प्रयास कर पाती हूँ।
~ कविता बिष्ट , देहरादून , उत्तराखंड