मनोरंजन

बन के माला प्रेम की – अनुराधा पाण्डेय

जब चिरपरिचित मुस्कान लिए,

मादकता मुखमंडल में भर,

ओस धुले पथ से चलकर

मेरी साँसे तुम छू जाती….

मैं धन्य-धन्य तब हो जाता …..

 

शीतल अधरों को भींच जरा,

अभिमंत्रित कर कुछ कहती हो,

केशों से अवरोहित मोती,

तुम जानबूझ बिखराती हो

ऐसे में गिरता शीत बिंदु

जब तन-मन मेरा धो जाता

मैं धन्य-धन्य तब हो जाता..

 

आँचल में मधु सौरभ भर जब

आकर पलकों को तर करती,

फिर लज्जामय होकर तत्क्षण

तुम ऊर्ध्व वक्ष पर सर रखती,

तब पुलकित तुममें खो जाता,

मैं धन्य-धन्य तब हो जाता ..

 

प्रणय तितीक्षा तब बढ़ जाती,

कम्पित उर, उर में चुभता

तुम अन्तर्मन में घुल जाती

मैं मुदित मग्न तकता रहता

तब तज कर मर्यादा सारी

मीठे सपनों में  खो जाता

मैं धन्य-धन्य तब हो जाता ..

 

बिखरे जब साँसों की खुशबू,

मधुमास हृदय में छा जाता

सरसों के पीले पृष्ठों पर

तब गीत भ्रमर मृदु रच जाता,

वो संयम का अनुबंध लिए,

दृग में सपने कुछ बो जाता,

मैं धन्य-धन्य तब हो जाता।।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

Related posts

मुक्तिका ( ग़ज़ल) – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

हर्षोल्लास के साथ मनाया विश्वकर्मा जन्मोत्सव

newsadmin

गजल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment