आगे तिहार देव उठनी के, मंडप बनायेंव कठई के हो।
कोहड़ा के पकुवा फदकाके, जेंवाबो कान्हा, तुरसी ल हो।।
सिरी किसना के जय बोलावंव, पाँव परौंव हाथ जोर हो।
घेरी-बेरी मैंय माथा नवावंव, जम्मों कोती करदे अंजोर हो।।
खुमरी ओढ़ के बँसुरी बजावय, खेत-खार म यादव हो।
धोतिया अउ जाकिट ह फभय, लहुट-पहुट के आवय हो।।
पहट चराके आवय पहटिया, बरदी चराके बरदिहा हो।
दोहनी म दूध दूहय, खाँड़ी म चुरोवय अधिरतिया हो।।
अहीरा नाचे टोली संग म, पारे सिंगार, मया के दोहा हो।
क्षत्रिय कुल के यदुवंशी आवैंय, कोनों नइ लैंय लोहा हो।।
खोड़हर देव के पूजा करैंय, राउत मन जाग के मातर हो।
गड़वा बाजा के धुन म थिरके, सजे धरे लाठी पातर हो।।
परसा जरी के सुहई बनायेंव, मोर पांखी ले सजायेंव हो।
अमरीत कस गोरस देवइया, गऊ माता ल पहिरायेंव हो।।
देवत हन आसिस तुंहला, अन्न-धन खूब बाढ़य घर म हो।
लाख बरीस जीयव सबो झन, सुख जिनगी के तर म हो।।
– अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़