रहोगे संग जब अधिकार होगे,
लड़ोगे संग तो मनुहार होगे।
झुकी नजरे मुसीबत बन गयी है,
लगे शर्मो हया से वार होगे।
नही मिलते हकीकत मे उनसे,
मगर सपनो मे तो दीदार होगे।
बने हैं अब दिवाने यार तेरे,
वजह भी आप ही सरकार होगे।
रहोगे यार कैसे अब सुकूं मे,
शिकायत संग अब उपचार होगे।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़