सुमिरन है शब्द भवानी का ।
सुंदर यह भाग कहानी का ।।
आ गए अयोध्या में रघुवर ।
दीपों की ज्योति जली घर घर ।।1
हो रहे तमाशे गलियों में ।
बट रहे बतासे गलियों में ।।
बज रही महल में शहनाई ।
मिष्ठान बनाते हलवाई ।।2
है राज तिलक की तैयारी ।
सारी जनता है बलिहारी ।।
पकवान बन रहे घर घर में ।
मिष्ठान बन रहे घर घर में ।।3
वृक्षों का तृण तृण चहक रहा ।
मिट्टी का कण कण महक रहा ।।
ये प्रथा आज दुहराते हैं ।
दीपों का पर्व मनाते हैं ।।4
राजा अब राम अयोध्या के ।
सुधरे सब काम अयोध्या के ।।
हैं भरत राम जी के सहायक ।
शत्रुघन लखन खास नायक ।।5
आधार राम हैं भारत के ।
आचार राम हैं भारत के ।।
संचार राम हैं भारत के ।
उपचार राम हैं भारत के ।।6
हैं राम सभ्यता के पोषक ।
हैं राम दिव्यता के पोषक ।।
हैं तीन लोक के प्रतिपालक ।
सारी दुनिया के संचालक ।।7
हैं राम सत्य के संचारक ।
हैं राम दैत्य के संहारक ।।
हर उर में राम समाये हैं ।
घर घर में राम समाये हैं ।।8
हनुमत को भूल नहीं सकते ।
गफलत में झूल नहीं सकते ।।
हर वक्त रहे जो उपयोगी ।
हनुमान राम के सहयोगी ।।9
ऋषियों ने करी गवाही है ।
बजरंगी राम सिपाही है ।।
नारायण के सच्चे संगी ।
पूजे जाते हैं बजरंगी ।।10
इस महापर्व का स्वागत हो ।
खुशहाली हो नित दावत हो ।।
ये लिखी बधाई ‘हलधर’ ने ।
स्वीकार करी नारी नर ने ।।11
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून