मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

अपनेपन की छाँव बिना मन, चैन नही जग में पाता,

तन भोगे भौतिक सुख धन से, पर मन प्यासा रह जाता।

 

ममता भरा भोज्य रूखा भी, लगे रसीला मीठा अति,

स्वादिष्ट सुगंधित तन्हा भोजन, काया को रास न आता।

 

संसाधन बिन उन्नति हो जब , आशीष मिले अपनों की,

दास दासियों की सेवा से, मन सुमन नहीं मुस्काता।

 

संरक्षण अपनों का रखता, उत्साहित और प्रफुल्लित,

आसान लगे दुर्गम पथ जब, प्रोत्साहन सर लहराता।

 

अपनेपन की गंध मनुज में , आत्मशक्ति  भर  देती  है,

लक्ष्य मिले तब ही तो जीवन, खुशियों को गले  लगाता।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश

Related posts

ग़ज़ल – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

अशोक गोयल को आदि शक्ति सम्मान के लिए नामित होने पर बधाई – संगम त्रिपाठी

newsadmin

महिलाएं – सुनीता मिश्रा

newsadmin

Leave a Comment