पैसे की खातिर मंचों पर , क्यों फिरता मैं मारा मारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।
मैं शहर शहर में घूम रहा ,फिर भी मेरा मन खाली है ।
ये भूख लगी जो पैसे की , दुर्बल मन की कंगाली है ।
बाहर से दिखता उजियारा , अंतर्मन लालच से हारा ,
सुर साज सभी रह जाएंगे , टूटेगा तन का इक तारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।1
साहित्य सदन की महफ़िल में , मैं घूम रहा बनकर छैला ।
दर्पण में चेहरा देखा तो ,प्रतिबिम्ब दिखा उसमें मैला ।
भाड़े का टट्टू बना हुआ ,क्यों तोता रट्टू बना हुआ ,
धन साथ नहीं जा पाएगा , फूंकेगा तन को अंगारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यार ।।2
बगिया यह रोक न पायेगी , मैं बना रहा जिसका माली ।
सब धरती पर रह जाएगा ,जब आएगी लेने काली ।
क्यों लगा रहा झूँठी धुन में ,गुण खोज रहा हूं औगुन में,
मरुथल में मृग सा घूम रहा , मैं थका थका हारा हारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।3
कविता जिन्दा रह जाएगी ,रह जाएंगे कुछ गीत पड़े ।
बस चित्र टंगा रह जाएगा , रोते रह जाएं मीत खड़े ।
कितना खोया कितना पाया ,”हलधर”रखना ये सरमाया ,
जिस दिन घर से अर्थी निकले, संसार बिलख रोए सारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून