गूँजी जब किलकारी,आँगन में बिखरी मुस्कान है,
मूल से कितना प्यारा ब्याज, आज हुआ ज्ञान है।
सूने-सूने घर का हर कोना, चहक उठा बरबस ही,
हर सू छाने लगी खुशियां, जब गूँजे मंगल गान है।
बिखर गई चहुँ ओर ममता, काफूर हुए दुःख-दर्द,
देखा जब घर आँगन में, मुस्काती नन्ही जान है।
सूरज, चंदा, तारे आज, लगे सब फीके-फीके से,
छुअन नन्हे हाथों की, उन्मुक्तता का भान है।
अब तक थी सम्बन्धो की, व्याख्या सिमित पर,
आज पुराने रिश्तों को मिली, इक नई पहचान है।
मधुरिम भाव पल्वित हुए, उर अंतस श्रृंगारित,
आशाएं भी ह्रदय तल में, करने लगी स्नान है।
गृह उपवन हुआ आच्छादित, स्नेह से ऐसे मेरा,
कानो में जैसे गूंजे कोयल का, मधुरिम गान है।
घर अँधियारा मिटा, पावस कदमो के आवन से,
आँगन शोभित हुआ मेरा, यूं लगे नये बिहान है।
रब की रहमत रही मगर, कमी रही बस तेरी ही,
बहुत याद आयी तेरी, बात ये सच्ची जांन है।
उरतल मारे हिलोरे, जब गूंजे अंगना किलकारी,
निराश मन हुआ प्रफुलित, न रहा कुछ ध्यान है।
– विनोद निराश, देहरादून (बुधवार 20 सितम्बर 2023)
उन्मुक्तता – खुलापन / आज़ादी
मधुरिम – माधुर्य / मधुरता / मिठास
पल्वित – उत्पत्ति / नन्हा पौधा जो नये नये पत्तों से युक्त हो
उरअंतस – अंतःकरण / हृदय या मन का आंतरिक भाग
आच्छादित – छाया हुआ / ढका हुआ
पावस – मानसून / वर्षाकाल में समुद्र की ओर से आने वाली वर्षासूचक हवाएँ
बिहान – सबेरा / आगामी कल
उरतल – ह्रदय की गहराई
प्रफुलित – अधिक प्रसन्न / आनंदित