जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फ़साद ।
मौत बस सच्ची सहेली ना- मुरादों की मुराद ।
काफिरों से बैर जिसका कौन सा भगवान वो ,
एक दिन दुनिया जला देगा उसी का ये जिहाद ।
यह ज़मीं जन्नत सरीखी और मत गंदा करो ,
युद्ध के अभ्यास से होने लगा सागर विषाद ।
जाति रूपी ज़ख्म अब नासूर बनते जा रहे ,
देश की आबोहवा में घुल रही इनकी मवाद ।
कारखाने मज़हबी कुछ गढ़ रहे जिन्ना नये ,
कुछ विदेशों की मशीनें कर रहीं इनको खराद ।
प्रश्न गंगा कर रही है मौन भागीरथ खड़े ,
स्वच्छता के नाम पर क्यों देश में पनपा विवाद ।
भूख से बीमार रोगी से चिकित्सक ने कहा ,
आपकी केवल दवा है पेट भर भोजन सलाद ।
उपनिषद गीता हमें देती यही उपदेश सच ,
अंश हैं सब ईश के शादाब,”हलधर” या निषाद ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून