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तंत्र साधना का आदर्श स्थान पाण्डव कालीन बगलामुखी मंदिर – संदीप सृजन

neerajtimes.com नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) – मध्य प्रदेश के आगर जिले की नलखेड़ा तहसील की पहचान पांडव कालीन पीताम्बरा सिद्ध पीठ मां बगलामुखी के मंदिर के कारण है। विश्व प्रसिद्ध पीताम्बरा सिद्ध पीठ मां बगलामुखी  का यह मंदिर शक्ति एवं शक्तिमान के सम्मिलित प्रभाव से युक्त है। यहां पर की जाने वाली साधना आराधना अनंत गुना फलप्रदा होती है। जब कभी शत्रु का भय हो तो बगलामुखी की साधना, आराधना आराधक को फलदायी रहती है। वहीं बगलामुखी की आराधना से शत्रु का स्तम्भन भी होता है। बगलामुखी मंदिर में स्थापित मूर्ति महाभारत कालीन है जो कि भीम पुत्र बर्बरीक द्वारा स्थापित की गई थी। यहां पाण्डवों ने भगवान कृष्ण के कहने पर मां की आराधना कर विजयश्री का वरदान प्राप्त किया था। मां बगलामुखी का वर्णन कालीपुराण में मिलता है। वर्ष की दोनों नवरात्रि के दौरान इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता हैं वही शारदीय व चैत्र नवरात्रि के दौरान तंत्र साधना के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा भी यहां लगा रहता है।

विराजित है त्रिशक्ति माँ –

पीताम्बरा सिद्धपीठ मां बगलामुखी का मंदिर है जहां त्रिशक्ति मां विराजित है बीच में मां बगलामुखी दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती।

दस महाविद्याओं में बगलामुखी का है विशेष महत्व –

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। शास्त्र के अनुसार इस देवी की साधना आराधना से शत्रुओं का स्तम्भन हो जाता है यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है।

260 वर्ष पूर्व बना सभा मंडप –

ग्वालियर रियासत के एक सूबेदार ने संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर गर्भ गृह के बाहर सोलह खम्बों वाले आराधना स्थल का निर्माण कराया था। यह विक्रम संवत 1815 सन 1759  में दक्षिणी कारीगर अबुजी द्वारा निर्मित किया गया था।

कई देवी-देवताओं का भी है वास –

मंदिर प्रांगण में काल भैरव की चमत्कारी प्रतिमा स्थापित है जो उज्जैन स्थित काल भैरव के समान मद्यपान का सेवन करती है मंदिर के आहते में ही वीर हनुमान राधा कृष्ण व महाकाल मंदिर भी स्थित है।

इतिहास के झरोखे में दीप-स्तंभ –

उज्जैन स्थित मां हरसिद्धि प्रतिमा के सम्मुख निर्मित दीप स्तम्भ के समान ही नलखेड़ा में भी 72 फीट ऊँचा दीप स्तम्भ बना हुआ है जो विशेष अवसरों पर मंदिर परिसर को जगमगाता रहता है। इनकी शिल्प कला की समरुपता को देखते हुए कहा जा सकता है कि राजा विक्रमादित्य ही इस मंदिर तथा दीप स्तम्भ निर्माण के प्रमुख रहे होगे। उल्लेखनीय है कि दीप स्तम्भ अति प्राचीन मंदिरों में ही पाये जाते है सम्राट विक्रम की आराध्या मां हरसिद्धि के मंदिर की प्रतिकृति इस मंदिर के गर्भगृह की दीवारों की लगभग 05 फीट चौड़ाई एवं कारीगरी भी इस बात के प्रमाण है कि यह मंदिर ईसा से एक शताब्दी पूर्व सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में निर्मित हुआ होगा। निसंदेह मंदिर निर्माण के पूर्व यहां स्वंयभू प्रतिमा रही होगी।

नदी तट –

भारत के शत प्रतिशत प्राचीन मंदिर किसी न किसी नदी के तट पर ही स्थित है। यह मंदिर भी लखुन्दर नदी के किनारे स्थित है। जिसका प्राचीन नाम लक्ष्मणा है। मंदिर परिसर के पृष्ठ भाग की दीवार से सटकर बहती है मानो माता के चरणों को पखारने के लिये ही वह यहां प्रवाहित हो रही है।

तंत्र साधना स्थली –

बगलामुखी पूजन में तंत्र विधि महत्वपूर्ण मानी गई है। इस विधि के अंतर्गत श्मशान में तांत्रिको द्वारा रात दिन प्रयोग पूर्वक सिद्धि प्राप्त करने हेतु पूजन की जाती है। यहां आठों दिशाओं में श्मशान स्थित है। साथ ही मंदिर प्रांगण में बिल्व पत्र, चम्पा, सफेद आंकड़ा, आंवला, नीम एवं पीपल के पूजनीय वृक्ष भी स्थित हैै। प्राचीन काल में संत साधक पुरुष समाधि द्वारा अपनी देह का त्याग करते थे। यहां ऐसी सत्रह समाधियां बनी हुई है। उपर्युक्त दोनों बातें इस बात को बल देती है कि यह मंदिर तंत्र पूजा का पूर्व से ही अति महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तंत्र पूजा हमारे देश में पांचवी शताब्दी के पूर्व विशेष रुप से संपादित की जाती थी अघोरी के रूप में आज भी उनके अवशेष पाये जाते है यह बात मंदिर की प्राचीनता की परिचायक है।

कच्छप की मूर्ति –

शास्त्रीय आधार पर कहा जा सकता है कि जहां तंत्र-पूजा एवं बलि दी जाती है वहां मुख्य प्रतिमा के सम्मुख कच्छप मूर्ति भी प्रतिष्ठापित की जाती है। मां बगला के सम्मुख प्रवेश द्वार के ठीक सामने कच्छप की मूर्ति स्थापित है जो इसकी प्राचीनता का सद्रूप साक्ष्य है।

इतिहासविद् के उद्गार –

प्राकृत भाषा, भाषा साहित्य के इतिहास के अनुसार भारतवर्ष में प्रथम से पांचवी शताब्दी के बीच प्राकृत भाषा सामाजिक बोलचाल की भाषा रही है। इसमें (वद्) प्रत्यय का प्रयोग होता है। इधर क्षेत्र के कई गांवों के नाम आज भी ऐसे ही बोले जाते जैसे- भण्डावद, कल्डावद, नैनावद, करनावद आदि। सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. वाकणकर ने इसके पुरातात्विक महत्व को स्वीकार किया है ऐसा प्रसिद्ध बल्डावदा हनुमान मंदिर भी इसी क्षेत्र में स्थित है पृष्ठ भाग में प्रवाहित लखुन्दर नदी पार करने के मार्ग को यहां बगावद कहा जाता है। स्पष्ट है कि बगला माता मंदिर के नाम पर ही इस घाट का नाम बगावद हो गया आज भी नदी पार करने के इस मार्ग को बगावद घाट के नाम से ही व्यापक रुप में जाना जाता है। प्राकृत भाषा की व्यवहार एवं कालावधि इस बात को रेखांकित करते है कि यह मंदिर पॉचवी सदी के काफी पहले से ही यहां स्थित था।

कौरवों से द्यूत क्रीड़ा में हारने के बाद वनवास की अवधि में भगवान कृष्ण ने पाण्डवों को यहां साधना करने हेतु सुझाव दिया था। अनुमान है कि उनकी विद्या स्थली सान्दीपनि आश्रम उज्जैन के सन्निकट होने से यह स्थान आम जनता के बीच भी पर्याप्त चमत्कारिक एवं लोकप्रिय रहा होगा। पांचों पाण्डवों ने शत्रु नाश एवं पुन: राज्य प्राप्ति की कामना से यहां माता की साधना करके अपना मनोरथ पूर्ण किया। कलियुग के पूर्व द्वापर युग में आज से सवा पांच हजार वर्ष पहले महाभारत युद्ध का उल्लेख हुआ है इतिहास भी पांच हजार वर्ष पूर्व हस्तिनापुर में पाण्डवों के राज्य का साक्षी है। दोनों तथ्य इस मंदिर की अति प्राचीनता को प्रमाणित करते है।

वर्तमान में यह स्थान मध्यप्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल घोषित हो चुका हैं यहां की प्राकृतिक छटा के साथ दिन रात होने वाले यज्ञों के मंत्रोच्चार की ध्वनि, पृष्ठ भाग स्थित डेम के जल भण्डार में बोटिंग का मनोहारी दृश्य, घाट स्थित पार्क में फूलों की बहार, संत निवास, धर्मशाला में आवास तथा नवरात्रि पर्व पर भक्तों के लिए फलाहार एवं भोजन की नि:शुल्क सुविधा फूलहार तथा साहित्य की उपलब्धता एवं परिसर स्थित विभिन्न देव मंदिरों के साथ यह मंदिर जन जन के आकर्षण का केन्द्र बन गया है। (विनायक फीचर्स)

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