विश्व में छाने लगीं अब युद्ध की तैयारियां ।
धुंध छायी हर तरफ रोने लगी किलकारियां ।।
बाज लोहे के दिखाते पैंतरे आकाश में ।
आग तोपों से निकलती युद्ध के अभ्यास में ।
और धरती पर उगीं बारूद की फुलवारियां ।।1
खींच कर भागे फिरंगी लीक इनके युद्ध की ।
लुप्त है संभावना संघर्ष के अवरुद्ध की ।
नाम पर इस्लाम के बहती लहू की धारियां ।।2
हर तरफ चर्चा छिड़ी है धर्म के उन्माद पर ।
मज़हबी फसलें उगी जिब्राइली उत्पाद पर ।
एक जड़ फिर भी बनी हैं नफरतों की क्यारियां ।।3 टी
रूस अमरीका लगे हैं हाथ अपने सेंकने ।
तालिबानी और हिज्बुल्ला खड़े बम फेंकने ।।
आग में घी डालती ईरान की अय्यारियां ।।4
पेड़ मानव सभ्यता का नष्ट ख़ुद करने लगे ।
मज़हबी आडंबरों ने हम सभी अब तक ठगे ।
मूल में देखो छुपी “हलधर “पतन बीमारियां ।।5
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून