साथ मिले बुजुर्गों का तो, हल आतप का मिल जाता,
अनुभव उनका राह दिखाये, जीवन नहीं भटक पाता।
नाम, ज्ञान, संरक्षण, पोषण, अपनापन पालक देते,
पाकर आशीषों की छाया, संतति को हँसना आता।
जीवन दर्पण रहे चमकता, संस्कारों की संगति से,
चलन बुजुर्गों का हमको, अपनी संस्कृति समझाता।
पितरों को बरगद की संज्ञा, से संबोधित करते हैं,
प्रेम और बलिदान उन्हीं का, हमें प्रगति पथ दिखलाता।
अपनी संस्कृति को हम समझें, अपनायें मन से उसको,
भारतीय परिवारों के गुण, जगत हमेशा से गाता।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश