हैं विविध सुन्दर सलोनी वस्तुएं बाजार में,
बेर शबरी के नहीं उपलब्ध पर संसार में।
मित्रता के बोध ने तंदुल सुदामा के चखे,
प्रीत ऐसी अब नहीं दिखती हमें व्यवहार में।
माँ रसोई जब सँभाले तृप्त होती है क्षुधा,
क्यों कि वह रखती डुबो कर भोज्य थाली प्यार में।
भावना ममता, क्षमा, अनुराग की अनमोल है,
वास है विश्वास का संबंध के आधार में।
जोड़ता है कौन नाता भक्त से भगवान का ,
अग्रणी श्रद्धा रही है प्रेम के संचार में।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश