बैठा उदास हूं मैं आज
देख समाज की बिगड़ती मनोदशा !
और बना हुआ हूं चिंतित यहां पर….,
देख युवाओं में नित बढ़ता नशा !!1!!
अब कहां तलक ले जाएंगी
ये नशा की कुत्सित मनोवृति !
और क्या कभी ये बदल पाएंगी……,
उनके जीवन की दशा दिशा और गति !!2!!
चहुँ ओर बढ़ रहा है तेजी से
आज युवाओं में उदासी का वातावरण !
और पल-पल चिंतित बना रहा है…….,
पूरे घर परिवार समाज को ये परिवर्तन !!3!!
लगता है उदासी घिर-घिर है आयी
आज जीवन के हर एक क्षेत्र में !
और नित परेशान बनाए चल रही…….,
समाज के हर एक वर्ग को जीवन में !!4!!
बदलते युग में ये बदलाव की लहर
सभी को बनाए चली जा रही चिंतित !
और टूटते बिखरते जा रहें हैं नित परिवार……,
बस ख़ामोशी से देख रहे सभी हो भयभीत !!5!!
नित्य बढ़ती युवाओं में भोग विलासिताएं
बना रही हैं उन्हें घोर आलस्य का शिकार !
और उलझा रही हैं उन्हें मानसिक रोगों में.,
तथा फैलाए जा रही हैं उदासी का विकार !!6!!
ऐसे माहौल से यहां निपटने के लिए
होगा युवाओं को हरेक पल जगाना !
मन से दूर उदासी भगाने के लिए…..,
नित्य धर्मज्ञान का होगा उन्हें पाठ पढ़ना !!7!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान