आकाश झिलमिला रही है आज भारती,
माहौल खिलखिला रही है आज भारती ।
फौलाद को गला दिया ठंडे कढ़ाव में,
पाषाण पिलपिला रही है आज भारती ।
तूफान दूर से हमें यूं घूरते रहे ,
पाताल को हिला रही है आज भारती ।
खिलने लगे गुलाब शुष्क रेगजार में ,
नवज्ञान से मिला रही है आज भारती ।
ऊंचा मुकाम दे रही जमात विश्व की ,
सम्मान वो दिला रही है आज भारती ।
रोबोट चांद पर हमारे घूमने लगे ,
दुनिया को तिलमिला रही है आज भारती ।
“हलधर” समूचे विश्व में सम्मान बढ़ रहा ,
यशगान सिलसिला रही है आज भारती ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून