मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

अलग बसेरा स्वप्न तुम्हारा था तो तुम पछताते क्यों हो,

जीवन अपना और पिता माता का तुम उलझाते क्यों हो।

 

अधिकारों का भोग हृदय को यदि प्यारा लगता है तो फिर,

कर्तव्यों का आगम लख कर आप सदा घबराते क्यों हो।

 

शादी बेटे की करनी हो तो तुम तन जाते हो बेहद,

ब्याह सुता में बदली हालत देख भला झल्लाते क्यों हो।

 

घेरे रहता है सुख जब तक याद नहीं ईश्वर को करते,

कष्ट जहाँ थोड़ा सा आया दिन भर पीर सुनाते क्यों हो।

 

दुनियादारी के पर्दे में कब तक इठलायेंगे दुर्गुण,

करनी के फल को ‘मधु’ रोकर खुद से दूर हटाते क्यो हो।

— मधु शुक्ला,सतना, मध्य प्रदेश

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