कुछ लोगों का धर्म यहाँ बस केवल पैसा होता है,
इज़्ज़त की है फ़िक्र नहीं पैसे का भूखा होता है।
औरत की इज़्ज़त ना कर पाए, तो है वो मर्द नहीं,
औरत से बातें करने का, एक सलीका होता है।
ख़ुद की मेहनत से ना पाकर लूटे बस जो औरों को,
सब कुछ मिलने पर भी वो इंसान अधूरा होता है।
भूले हो ये बात अगर तो याद दिला दूँ सबको मैं,
अच्छे ना हों कर्म तो उसका ग़लत नतीजा होता है।
मक्कारी और झूठ का जामा पहने जो भी रहता है,
ऐसे लोगों का ना कोई ठौर-ठिकाना होता है।
मेहमां बनकर घर आया तो मैंने था सम्मान दिया,
जान गए अब, बदले में अपमान कराना होता है।
औरों का तू खून चूसकर खुद का चाहे घर भर ले,
तेरे जैसे मक्कारों का नहीं ज़माना होता है।
मैं तो हूँ चट्टान भला तू कैसे मुझको तोड़ेगा,
मुश्किल ऐसी चट्टानों को तोड़ गिराना होता है।
– डॉ० भावना कुँअर, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया
संपादक-ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका