अदावत का समाज होने दो ।
सियासत बद -लिहाज़ होने दो ।
गरीबी भुखमरी से कहती है ,
हमें भी बद – मिज़ाज होने दो ।
न रोको बेटियों को बढ़ने से ,
उन्हें भी ख़ुद हिफाज़ होने दो ।
रवायत भूलो मत सदियों पुरानी,
सबकी पूजा नमाज़ होने दो ।
हिफाज़त में रहें सब फूल कलियां ,
उन्हें भी खुश मिज़ाज होने दो ।
नहीं रोको किसी को बढ़ने से ,
तरक्की बे हिज़ाज होने दो ।
जड़ें खोदो नहीं कुछ मजहबों की ,
सदाकत का रियाज़ होने दो ।
जिएं हम देश की खातिर हलधर,
सभी को कारसाज़ होने दो ।
-जसवीर सिंह हलधर, देहरादून