बहिन तेरे खुले तन से, तेरे पुरखे ही शरमाये,
तुम्हारी नग्नता देखी, तो माँ के नैन भर आये।
सिर्फ पैसो के खातिर तो,उधाडो मत बदन अपना,
हवश उन धन कुबेरो की, तुम्हे बे घर न कर जाये।
ये भारत देश की संस्कृति, बहिन मन से ना बिसराओ,
दिखाकर अंतरंगो को,बहिन खुद पर न इतराओ।
ये हवशी, लालची कुत्ते, लगाए घात बेठे हैं,
क्लबों मे जाम पीकर तुम, जिस्म अपना ना चिथवाओ।
हमारे देश मे यारो,ये कैसा दौर आया है,
चलन पाश्चात्य संस्कृति का, यहां चहुँ और छाया है।
बदन खोले नई पीढ़ी,खड़ी है आज मंचों पर,
वही नारी पदक जीती, बदन जिसने दिखाया है।
जो बदन खोल मंचों पे आने लगे,
पद्मश्री पदम भूषण वे पाने लगे।
हाय कैसा ये अपना वतन हो गया,
चौर गुंडे पदक ले के जाने लगे।
– अमन रंगेला “अमन” सावनेरी
सावनेर नागपुर महाराष्ट्र
9579991969