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राखी – अशोक कुमार यादव

किसी की बहन नहीं है, किसी का ना भाई है।

राखी बाँधेगी कौन?, सूनी हाथ की कलाई है।।

 

बाजार से रेशमी राखी, खरीद लाई है बहना।

थाली में सजा कर बैठी, प्रेम का सुंदर गहना।।

 

सुबह से नहा कर, नए कपड़े पहन बैठा है भाई।

बार-बार, लगातार राह देख रहा है नजरें गड़ाई।।

 

कैसे मनाऊँ मैं राखी?, किसका करूँ इंतजार?

दुःख में आँखों से बरस रही आँसूओं की धार।।

 

बहन सोच रही सबके होते हैं भाई, मेरा क्यों नहीं?

किसे पुकार कर आवाज दूँ?, मन की बातें कही।।

 

भाई बैठा है गुमसुम, उदास मन, सिसकियाँ लेते।

मेरा कोई नहीं है दुनिया में जो मुझे राखी बाँधते?

 

ये दिव्य रक्षा सूत्र भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।

अपनी बहन की सुरक्षा, साथ निभाने की सीख है।।

 

पावन है, मनभावन है, रक्षाबंधन का यह त्यौहार।

सदियों तक अमर रहेगा, भाई-बहन का यह प्यार।।

– अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

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