काट लें आ ! निशा आँख ही आँख में।
क्या पता ये मिलन फिर दुबारा न हो ।
बुझ गये थे सभी आस के दीप जब,
आज नभ से उतरती दिखे चाँदनी?
भग्न मन के सभी तार जब हो गये
भाग्य से आ बजी फिर प्रणय रागिनी ।
बाँध लो आज तो चंदनी पाश में….
क्या पता बाँह का कल सहारा न हो ।
काट लें आ ! निशा आँख ही आँख में,
क्या पता ये मिलन फिर दुबारा न हो ।
आज मैं भी यहीं चाँद तुम भी यहीं,
पास रहकर तृषित क्यों रहे चातकी ।
आज आओ बदल दे उभय मिल अभी ,
सद्य किस्मत प्रिये ! इस विरल रात की ।
आ ! बसा लें हृदय प्रीत की रश्मियाँ..
क्या पता कल निलय में सितारा न हो ।
काट ले आ ! निशा आँख ही आँख में,
क्या पता ये मिलन फिर दुबारा न हो ।
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली