लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है ।
देवता भयभीत हैं क्यों स्वर्ग धरती आ रहा है ।।
अब हवाएं मौन होंगी नीड़ निगलेगी न आँधी ।
यातनाएं गौण होंगी कह गए यह बात गाँधी ।।
भूख से होंगी न मौतें शांति होगी मरघटों में ।
अब हलाला भी न होगा क्रांति होगी घूंघटो में ।।
गीत जन गण देवता के ख़ुद हिमालय गा रहा है ।
बिजलियों के साथ बादल भी जमीं पर छा रहा है ।।
लोक में परलोक नक्शा उतारा जा रहा है ।।1
मौत से होगी न शादी जिंदगी आसान होगी ।
नर्क में होंगे जिहादी मौत ही पहचान होगी ।।
देश का कानून होगा जालिमों को अब पनौती ।
योजनाएं अब बनेंगी जुल्म शोषण को चुनौती ।।
न्याय के अंगार को सूरज स्वयं दहका रहा है ।
एक योगी जेल में अपराधियों को खा रहा है ।।
लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है ।।2
स्वप्न हो साकार सबका मांग लो बढ़कर दुआएं ।
यज्ञ में आहूति दें हम भूलकर मज़हब बलाएं ।।
राष्ट्र के निर्माण हित में जो कहो खुलकर कहो अब ।
कौम के उत्थान में यूँ शांत ना बैठे रहो अब ।।
दाम खेती की उपज का भी बढ़त दिखला रहा है ।
मंत्र भारत भारती का एक सबको भा रहा है ।।
लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है ।।3
देश की खातिर जियें हम शान से सर को उठाये ।
चाँद मंगल सैर कर ली सौर मंडल चूम आये ।।
आज मेरे देश में आने लगी खुशहालियां ।
फूल फल से लद रहीं मेरे चमन की डालियां ।।
छंद का आयाम मेरी लेखिनी पर छा रहा है ।
शारदे की साधना का लाभ “हलधर “पा रहा है ।।
लोक में परलोक का नक्शा उतारा जा रहा है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून