मनोरंजन

चले आओ – ज्योत्स्ना जोशी

अश्कों की सौगात समेटे

राहों का इंतजार सहेजें

चांद आंखों में क़ैद कर

चांदनी का लिबास पहने

चले आओ।

 

लफ्ज़ की रोशनी ओढ़कर

गीत को सांसों में पिरोकर

मौन की अभिव्यंजना में

चित्त का मनुहार थांमे

चले आओ।

 

लौटती निगाहों में लम्हें बांधकर

दिये की आंच में निशा को रखकर

तेरे होने के जवां सिलसिलेवार

मौसम में,

सिलवटों पर चाहत का हाथ रखकर

चले आओ।

 

उठ रही किसी हूक  की तरह

फूलों के स्पंदन से तमन्ना देहरी में

बिछाकर

बादलों से कहो आदतन वैसे ही बरसें

बूंदें हथेलियों में निथारकर

चले आओ।

 

सारे किनारे कब मांझी को डुबोते हैं

काजल की बिखरन ज़ाहिर नहीं होती

तमस अपनाकर उजालों को मनाकर

रेत पर पल अनछुआ लिखकर

चले आओ।

– ज्योत्स्ना जोशी , चमोली , उत्तरकाशी, उत्तराखंड

Related posts

मधुर सम्बन्धों का पुनर्गठन – मुकेश मोदी

newsadmin

गजल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment