अब बेटे भी होने लगें,
घर आँगन से दूर।
कभी पढ़ाई लिखाई,
कभी नौकरी से मजबूर।।
सब कहते हैं बेटियाँ,
परायी बनकर आती हैं,
वक्त के साथ ,
ससुराल चली जाती है।
यह नूर कुछ दिनों के लिए ही,
बाबुल के घर आती है।
यहाँ तो बेटे भी,
घर छोड़ने को हो गयें मशहूर।
अब बेटे भी होने लगें,
घर आँगन से दूर। ।
ससुराल से बेटियाँ,
चिड़ियों की तरह पीहर में आती है।
घर बाहर चहकती हैं,
सब गम भुलाती हैं।
मगर अब तो बेटे भी,
भूले त्यौहारों के सूरूर।
अब बेटे भी होने लगें,
घर आँगन से दूर। ।
माँ बाबू गिनते रहते हैं,
दिन और रात।
पिछली बार कब हुई ,
अपने बेटे से बात।
बेटियों को तो रिवाजों से,
ब्याह कर किया सुदूर।
अब बेटे भी होने लगें,
घर आँगन से दूर। ।।
-रूबी गुप्ता दुदही, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश