खो गये हम अजी रास्तों का पता,
आज ढूँढे सभी दोस्तों का पता।
चाँद तारो से अब तो सजी पालकी,
आज माँगे सभी दुल्हनों का पता।
खुशनुमा जिंदगी यार पहले भी थी,
आज क्यो दे हमें दुशमनों का पता।
कर रहे पहरदारी खड़े देश की,
आज पूछो जरा सरहदो का पता।
हाल मेरा सुनो आज दिल का जरा,
हम बताऐ जरा आशिकों का पता।
खोज लो आज कैसे चुने रास्ता,
रास्तो से मिले मंजिलो का पता।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़